सुनाऊँ तुम्हें आज इक माजरा कि इक लड़का मकड़ी के पीछे पड़ा फिर उस ने बड़ा एक डंडा लिया पकड़ कर सिरे पर उसे रख दिया वहाँ पास था एक दरिया बड़ा वो डंडे पे मकड़ी को ले के बढ़ा बहुत दूर पानी में गाड़ा उसे कि उस वक़्त पानी था बिफरा हुआ किनारे वो चुप-चाप बैठा रहा कि देखें तमाशा अब होता है क्या निकलती है दरिया से किस तरह ये चलो आओ देखें मज़ा आएगा थी कुछ देर मकड़ी वहाँ दम-ब-ख़ुद फिर उतरी तो हर सम्त पानी मिला कई बार उतरी चढ़ी फिर न जब रिहाई का कोई भी रस्ता मिला तो कुछ देर वो सोचती ही रही फिर उस ने वहाँ अपना जाला बुना यूँ ही सत्ह-ए-दरिया पे फेंका उसे कि पानी से ज़्यादा वो वज़्नी न था वो डंडे से जाले पे आई तो फिर ठहर के वहाँ और जाला बुना वहाँ से उसे फेंका पानी पे यूँ कि कुछ दूर आगे वो जाला बढ़ा वो जाले से जाले पे आती रही यहाँ तक कि साहिल क़रीब आ गया वो लड़का उसे देखता रह गया ज़ेहानत पे मकड़ी के हैरान था वो मकड़ी किनारे पे यूँ आ गई कि जैसे वहाँ कुछ हुआ ही न था मुसीबत में साबित क़दम जो रहे वही है ज़माने में सब से बड़ा