क्या उगला मोड़ विसाल का है क्या उगला हुक्म धमाल का है मालूम करो मालूम करो वो मंज़िल चौथे कोस पे है जिस मंज़िल पर इंकार-ए-दरून-ए-ज़ात-ए-अलम एहसास-ए-बद दूर हो जाएगा और पारा पारा जज़्बों की यकजाई से इक़रार अमर हो जाएगा जब उम्रों के तख़मीनों से कुछ क़दमों पर इक भीड़ लगेगी साँसों की उन साँसों की जो छन छन कर के गिरती हैं बेताब समय के सीने पर उस सीने पर जिस सीने में कुछ चाँदी है कुछ सोना है उन नस्लों का जो हम दोनों के ध्यान में हैं और दस्त-ए-शिफ़ा की सूरत हैं