मामूल By Nazm << ना-रसाई लहर का ठहराओ >> मैं भी बादशाह की हुकूमत का मुनकिर हूँ लेकिन जीने की आरज़ू में रोज़ उस की चौखट पर सूरज सा उभरता हूँ शाम सा डूबता हूँ घर में एलान-ए-बग़ावत के तौर पर बीवी बच्चों को मारता हूँ रात रात जागता हूँ Share on: