मेरे सामने बैठा अजनबी मुझे देखता था शायद कोई आबला-पा था मेरी आँखों से हो कर गुज़रा शायद कोई दरिया था कोई सराब था सभी मंज़रों से ओझल ट्रैफ़िक के धुएँ में गुम होता हुआ कोई हुजूम था जैसे कोई पुर-सुकून सा अमावस रातों का दर्द देखते देखते अपनी सूरत बदलने लगा था मैं कहने ही वाली थी कि मुझे तुम चाहते हो उम्र भर के लिए और इतने में मेरे सय्यारे ने उस के सय्यारे में अपनी मुद्दत पूरी की और एक एलीयन फ़ोर्स की तरह किसी और दुनिया की ओर मुझे उड़ा ले गया मैं ने कहा था ना वक़्त फिसल जाता है हाथों से जवाँ रातें ज़मानों की आग़ोश में इक दिन थक कर सो जाती हैं