आओ कि मर्ग-ए-सोज़-ए-मोहब्बत मनाएँ हम आओ कि हुस्न-ए-माह से दिल को जलाएँ हम ख़ुश हूँ फ़िराक़-ए-क़ामत-ओ-रुख़्सार-ए-यार से सर्व-ओ-गुल-ओ-समन से नज़र को सताएँ हम वीरानी-ए-हयात को वीरान-तर करें ले नासेह आज तेरा कहा मान जाएँ हम फिर ओट ले के दामन-ए-अब्र-ए-बहार की दिल को मनाएँ हम कभी आँसू बहाएँ हम सुलझाएँ बे-दिली से ये उलझे हुए सवाल वाँ जाएँ या न जाएँ न जाएँ कि जाएँ हम फिर दिल को पास-ए-ज़ब्त की तल्क़ीन कर चुकें और इम्तिहान-ए-ज़ब्त से फिर जी चुराईं हम आओ कि आज ख़त्म हुई दास्तान-ए-इश्क़ अब ख़त्म-ए-आशिक़ी के फ़साने सुनाएँ हम