मशरिक़ी बीवी By Nazm << हिजरत की नज़्म हाईकू >> किस क़दर झगड़ता है रोज़ रोज़ लड़ता है फिर भी जाने क्यों आख़िर मुझ से रूठ कर अक्सर जब भी घर से जाता है बहुत याद आता है ख़ुद को डाँटती हूँ मैं सारी ग़लतियाँ उस की रख के अपने खाते में हँस के बात करती हूँ ये ही मेरा शेवा है कि मैं हूँ मशरिक़ी बीवी Share on: