खेत प्यासे हैं फ़ज़ा हाँफती है जा-ब-जा उखड़ी जड़ें चाटती इक गाए के सूखे हुए मटियाले खुरों की मानिंद फट गई है जो ज़मीं उस में उगी झाड़ियाँ बे-बर्ग-ओ-समर रहती हैं मौसम हो कोई किसी फ़ालिज-ज़दा बीमार के अकड़े हुए पंजे की तरह टहनियाँ सोए फ़लक देखती फ़रियाद-कुनाँ हैं कब से महज़ फ़रियाद से ऐ दोस्त मगर क्या होगा जोड़ता रहता है मौसम की विरासत से दिलों को जो किसी मेज़-नुमा शय ये कई दिन से पड़ा चाए-ख़ाने का फटा सा अख़बार इक नज़र आओ इसे देख तो लें हाल ऐसा है कि अब जो भी हो अच्छा होगा