मौसम तो हर साल इस शहर में आते हैं हरे भरे मटियाले मौसम लेकिन उन की गोद में हम इस मौसम की कोंपल ढूँडते रहते हैं जो साँसों के रस को छू कर जिस्मों के बल पर तक चढ़ आती है जिस की ओक में प्यासी ख़्वाहिश सारी रुतों के रंग और ज़ाइक़े चख लेती है जैसे गहरे बादल की आग़ोश में बारिश और बहते दरियाओं की पाताल में मोती ऐसे ही हम दोनों की बे-ताब कशिश से इक ये मौसम छा जाता है मौसम जिस के धानी कपड़े लज़्ज़त की ख़ुशबू से तर हैं जिस के खुले हुए मौसम में जंगली तीतरियों के पर हैं