मौत हयात के शजर का फल है इसे भी चख कर देखो बहुत किनारे देख चुके अब नदी से मिल कर देखो ख़ाक पे अपनी तदबीरों से नक़्श बनाए क्या क्या बहुत चले इन रस्तों पर अब हवा में चल कर देखो और भी दश्त हैं और भी दर हैं इस बस्ती से मीलों बाहर उन जैसे ही और भी घर हैं जिन के आँगन जलते बुझते ऐसे ही कुछ शाम-ओ-सहर हैं जिन की तलाश में सब दर झाँके क़र्या क़र्या चढ़ते चाँद और डूबते सूरज कोह-ओ-दमन सब खोले शायद वो भी वहीं मिले अब उस घर चल कर देखो मौत हयात के शजर का फल है इसे भी चक्कर कर देखो