जुदाई मोहब्बत के दरिया-ए-ख़ूँ की मुआविन नदी है वफ़ा याद की शाख़-ए-मर्जां से लिपटी हुई है दिल-आराम ओ उश्शाक़ सब ख़ौफ़ के दाएरे में खड़े हैं हवाओं में बोसों की बासी महक है निगाहों में ख़्वाबों के टूटे हुए आइने हैं दिलों के जज़ीरों में अश्कों के नीलम छुपे हैं रगों में कोई रूद-ए-ग़म बह रहा है मगर दर्द के बीज पड़ते रहेंगे मगर लोग मिलते बिछड़ते रहेंगे ये सब ग़म पुराने ये मिलने बिछड़ने के मौसम पुराने पुराने ग़मों से नए ग़म उलझने चले हैं लबों पर नए नील दिल में नए पेच पड़ने लगे हैं ग़नीम-आसमानों में दुश्मन जहाज़ों की सरगोशियाँ हैं सितारों की जलती हुई बस्तियाँ हैं और आँखों के रादार पर सिर्फ़ तारीक परछाइयाँ हैं हमें मौत की तेज़ ख़ुशबू ने पागल किया है उमीदों की सुर्ख़ आब-दोज़ों में सहमे तबाही के काले समुंदर में बहते चले जा रहे हैं कराँ-ता-कराँ एक गाढ़ा कसीला धुआँ है ज़मीं तेरी मिटी का जादू कहाँ है