उफ़ुक़-ए-ज़ीस्त से इक और सितारा टूटा इक किरन और हुई रात की ज़ुल्मत में असीर फिर किसी नग़्मा-ए-बेताब की लय साज़ से आज़ाद हुई एक ताबिंदा हक़ीक़त कि जो थी राज़ हुई सर्द पैमान-ए-वफ़ा सर्द हुई आतिश-ए-शौक़ सर्द जज़्बात का तूफ़ान ख़मोश सर्द ताबिंदा निगाहों के शरार सर्द-बर-कैफ़ियत-ए-ग़म की सुलगती हुई आग जाम पुर-शोर से गिर जाने दो नाकाम तमन्नाओं की मय फ़र्श-ए-मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त पे उलट दो साग़र सर-निगूँ बंद दरीचों में उम्मीदों के दिए गुल कर दो दास्ताँ सोज़-ओ-मोहब्बत की अधूरी है मगर अलमिया ख़त्म हुआ दिल-शिकन आख़िरी मंज़र पे गिरा दो पर्दे