फैली है फ़ज़ाओं में ख़ुशी मेरी नज़र की हँसती नज़र आती हैं फ़ज़ाएँ मिरे घर की दिल-शाद मिरे अहल-ओ-अयाल आज बहुत हैं मसरूफ़ हैं वो भी नहीं मसरूफ़ फ़क़त मैं रखी है सलीक़े से हर इक काम की चीज़ आज मेहमान मिरे घर में हैं कुछ मेरे अज़ीज़ आज शादी का मकाँ घर मिरा मालूम न हो क्यूँ मजमा' हो जब इतना तो भला धूम न हो क्यूँ भाई भी हैं बहनोई भी भावज भी बहन भी बैठा है भतीजा भी भतीजे की दुल्हन भी बच्ची इधर इक बैठ के तकती है दुल्हन को कुछ तिफ़्ल सताते हैं उधर अपनी बहन को बच्चों पे झलक ख़ास है तनवीर-ए-सहर की उठ बैठे हैं सब सुनते ही आवाज़ गजर की दिलकश ये फ़ज़ा सुब्ह की ये नूर का तड़का बुलबुल की तरह बोल रहा है कोई लड़का बे-वज्ह कोई रोने पे आमादा हुआ है हैरत से नए गुर को कोई देख रहा है बैठा है ये चुप दौड़ रहा है वो ख़ुशी से खाने के लिए ज़िद कोई करता है अभी से करना है जो सामान-ए-ज़ियाफ़त को फ़राहम आ आ के मिरे कान में कुछ कहती हैं बेगम होना है जो ख़ूबी से ज़ियाफ़त का सर-अंजाम लड़की के ज़रिए से भी पहुँचाती हैं पैग़ाम आती भी हैं जाती भी हैं बेगम सू-ए-मतबख़ मामाओं में बे-वक़्त जहाँ होती है चख़ चख़ राहत न मिले क्यूँ उन्हें हल्की तग-ओ-दौ में साए की तरह साथ है लड़की भी जिलौ में नन्ही अभी उट्ठी नहीं पहलू से फुफी के लेती हैं वो रह रह के मज़े उस की हँसी के लड़के मिरे ख़ुश हो के उधर देख रहे हैं इख़्लास-ओ-मोहब्बत से मुख़ातिब हूँ जिधर मैं मजमा' ये अज़ीज़ों का मोहब्बत की ये बातें इन प्यार की बातों में न चोटें हैं न घातें अनवार तबस्सुम के तकल्लुम से हैं पैदा ज़ौ सुब्ह की इस मंज़र-ए-दिल-कश पे है शैदा बातों का अभी था तरबी सिलसिला जारी नर्गिस ने कहा आ के है तय्यार नहारी
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