मेरा कमरे से बस नींदों का रिश्ता था

मिरा कमरे से बस नींदों का रिश्ता था
और उस ज़ीने से ख़्वाबों का

जो लहराता हुआ जाता था छत तक
वो छत

जहाँ से आसमाँ नज़दीक था
जहाँ आराम फ़रमाती थीं आँखें

वो आँखें जिन में सपने थे
वो सपने जिन में दुनिया थी

वो दुनिया जिस में सब कुछ था
वही छत

जहाँ पर एक चिड़िया की सुरीली चहचहाहट थी
पतंगों की सजावट थी

फ़लक की झिलमिलाहट थी
मगर अफ़सोस

वो चिड़िया जो सवेरे घर में सबसे पहले उठती थी
किसे मा'लूम था इक दिन वो ज़ेर-ए-दाम आएगी

पतंग-ए-काग़ज़ी जो आसमाँ छूने ही वाली थी
किसे मा'लूम था वो लौट कर नाकाम आएगी

फ़लक जिस पर तमन्नाओं के कितने चाँद रौशन थे
किसे मा'लूम था उस पर अमावस की भी कोई शाम आएगी

वो छत जो घर का सबसे पुर-सुकूँ और प्यारा हिस्सा थी
किसे मा'लूम था वो ख़ुद-कुशी के काम आएगी


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