काएनात के इंतिज़ाम में इक छोटा सा ज़र्रा हूँ मैं लेकिन इतना जान गया हूँ मेरे अंदर इक सहरा है जो सदियों से प्यासा है मैं वो अमृत ढूँढ रहा हूँ जिस से उस की प्यास बुझे मेरे अंदर है इक सागर कितना गहरा कोई न जाने ग़ोता-ख़ोर के रूप में अक्सर कोशिश की है उस की तह तक पहुँच सकूँ बे-शक बड़े निज़ाम का छोटा सा हिस्सा हूँ लेकिन मुझ में वो वुसअत है जिस में सौ सहरा खो जाएँ मुझ में है गहराई ऐसी जिस में कई समुंदर डूबे मेरे अंदर एक अनोखी दुनिया है काएनात उस का छोटा सा हिस्सा है