अब टूट भी चुके मिरा साग़र तिरा रबाब अब क़हक़हे लगाएगी ज़ुल्मत मिरे नदीम क़ल्ब-ए-तपाँ से आई है कितनी उदास आँच शो'लों पे सो गई है मोहब्बत मिरे नदीम कितना बदल गया हूँ मगर किस तरह कहूँ आती है अब भी रोज़ क़यामत मिरे नदीम फिर बुझ गए चराग़ मिरे आँसूओं के आज आँखों में खो गई है सदाक़त मिरे नदीम इन क़हक़हों में गुम है मिरी ज़िंदगी का राज़ जैसे भुला चुका हूँ मोहब्बत मिरे नदीम बस इक फ़रेब-कारी-ए-उल्फ़त सही मगर कुछ दूर भी नहीं है हक़ीक़त मिरे नदीम