ख़याल ओ शेर की दुनिया में जान थी जिन से फ़ज़ा-ए-फ़िक्र-ओ-अमल अर्ग़वान थी जिन से वो जिन के नूर से शादाब थे मह-ओ-अंजुम जुनून-ए-इश्क़ की हिम्मत जवान थी जिन से वो आरज़ुएँ कहाँ सो गई हैं मेरे नदीम? वो ना-सुबूर निगाहें, वो मुंतज़िर राहें वो पास-ए-ज़ब्त से दिल में दबी हुई आहें वो इंतिज़ार की रातें, तवील तीरा-ओ-तार वो नीम-ख़्वाब, शबिस्ताँ वो मख़मलीं बाहें कहानियाँ थीं कहीं खो गई हैं मेरे नदीम मचल रहा है रग-ए-ज़िंदगी में ख़ून-ए-बहार उलझ रहे हैं पुराने ग़मों से रूह के तार चलो कि चल के चराग़ाँ करें दयार-ए-हबीब हैं इंतिज़ार में अगली मोहब्बतों के मज़ार मोहब्बतें जो फ़ना हो गई हैं मेरे नदीम!