ऐ मिरे दुश्मन-ए-जाँ मैं तुझे और तो कुछ कह नहीं सकता लेकिन काश तक़दीर कभी तुझ को दिखाए वो दिन जब मोहज़्ज़ब सी तवाइफ़ कोई अपने पेशे की मज़म्मत कर के तुझ से इज़हार-ए-मोहब्बत कर के तेरे आसाब पे नश्शे की तरह छा जाए और तुझे उस की मोहब्बत का यक़ीं आ जाए ऐ मिरे दुश्मन-ए-जाँ