मिरा दर्द न जाने कोई By Nazm << तर्ज़-ए-हयात ख़ाली लम्हों की नज़्म >> एक तरफ़ बेटी है मेरी एक तरफ़ मिरी माँ दोनों मुझ को अक़्ल बताती रहती हैं बारी बारी सबक़ पढाती रहती हैं दो नस्लों के बीच खड़ी मैं ख़ुद पर हँसती रहती हूँ अपनी गिर्हें आप ही कसती रहती हूँ मेरे दोनों हाथ बंधे मिरा दर्द न जाने कोई Share on: