मिरा जज़्बा-ए-शौक़ काम आ रहा है कि बाज़ार में देखूँ आम आ रहा है ग़रीब-ओ-अमीर उस के शैदाई यकसाँ पसंदीदा-ए-ख़ास-ओ-आम आ रहा है किसी मुक़तदी को खरीदूँ मैं क्यूँकर कि जब ख़ुद फलों का इमाम आ रहा है सब हाथों को फैलाएँ आँखें बिछाएँ फलों में वो आली मक़ाम आ रहा है वो चौसा सरोली वो सिंधड़ी वो फ़ज़ली वो आमों का इक अज़दहाम आ रहा है है लंगड़ा प लंगड़ाते लंगड़ाते देखो वो महबूब-ए-मन ख़ुश-ख़िराम आ रहा है मुझे है ख़ुशी जो हैं दीवाने उस के 'असर' उन में मेरा भी नाम आ रहा है