मीरास By Nazm << पैमान-ए-वफ़ा मेरे साथी तिरे और मिरे दर... >> उम्र भर ऊँघती राहों पे रहे गर्म-ए-सफ़र रक़्स करते रहे जज़्बात में सोज़िश के शरर आज भी ज़िंदगी और मौत के दोराहे पर दोस्त आ बैठ के सुस्ता लें घड़ी भर के लिए शाम के रेंगते सायों की घनी छाँव में ये तो अपने हैं किसी ग़ैर की मीरास नहीं Share on: