मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने निगाहों से शम-ए-फ़रोज़ाँ बनाया दरीचे में खिलती हुई इक कली को लबों ने छुआ और गुलिस्ताँ बनाया रग-ओ-पै में गुल-रंग सैल-ए-रवाँ को दो-आलम से यकसर गुरेज़ाँ बनाया अज़ल से भटकती हुई आरज़ू को तमन्ना-ए-शहर-ए-दिल-ओ-जाँ बनाया मोहब्बत के बिखरे हुए ख़ार-ओ-ख़स से जहाँ में बस इक दश्त-ए-इम्काँ बनाया ख़ुदा का न होना भी मुमकिन है लेकिन जो मौजूद है उस को इम्काँ बनाया