नश्शा जिस वक़्त भी टूटेगा, कई अंदेशे सुब्ह-ए-लब-बस्ता के सीने में उतर आएँगे महफ़िल-ए-शोला-ए-शब-ताब के सारे लम्हे राख हो जाएँगे पलकों पे बिखर जाएँगे रेत दर आएगी सुनसान शबिस्तानों में और बगूले पस-ए-दीवार नज़र आएँगे इस से पहले कि ये हो जाए, मिरे ज़ख़्मी होंट मैं ये चाहूँगा कि बे-लहन-ओ-सदा हो जाएँ मैं ये चाहूँगा कि बुझ जाए मिरी शम-ए-ख़याल इस से पहले कि सब अहबाब जुदा हो जाएँ इस लिए मुझ से न पूछो कि सफ़-ए-याराँ में क्यूँ ये दिल बे-हुनर-ओ-हुस्न-ओ-तमीज़ इतना है और ऐ दीदा-वरो! ये भी न पूछो कि मुझे साग़र-ए-ज़हर भी क्यूँ जाँ से अज़ीज़ इतना है