मिरे ख़्वाब अश्कों में तहलील हो कर कहीं खो गए हैं ख़याल आ रहा है कि शायद मिरी रूह के नीम-तारीक से जंगलों में भटकने लगे हैं कई दिन से उन तक मिरी सोच मेरे तसव्वुर की कोई रसाई नहीं है मगर जानती हूँ कि वो धीरे धीरे मिरे ही लहू में सिसकने लगे हैं कई दिन से मैं ने उन्हें कोई लोरी सुनाई नहीं है सो अब ये किसी नन्हे बच्चे की सूरत बिलकने लगे हैं मैं अब सोचती हूँ कि उन के लिए अपनी आँखों से बाहर निकलने की मैं कोई तदबीर करती तजरबों के रौशन सफ़र पर उन्हें साथ ले कर तो जाती मैं इक बार तो उन की तौक़ीर करती मैं अब सोचती हूँ कि इक ख़ूबसूरत सा चेहरा बना कर उन्हें अपने कमरे की बोसीदा दीवार पर ही सजाती मोहब्बत के बिखरे हुए सारे रंगों को तस्वीर करती मगर अब मिरे ख़्वाब गहरी बग़ावत के नश्शे में हैं वो बहकने लगे हैं सो अब ये हुआ है कि मैं ने उठा कर उन्हें घर की दहलीज़ पर रख दिया है कि शायद कोई इक शनासा मुसाफ़िर इधर आन निकले ज़रा देर ठहरे ज़रा मुस्कुराए मिरे ख़्वाब की किर्चियों को समेटे और अपनी उमंगों से भरपूर आँखें यहीं छोड़ जाए