मेरी बातें जैसे धूप हो सरमा की दालानों में बर्फ़ें तेरी ख़ामोशी की जिन के नीचे हाथ हमारे मज़बूती से जुड़े हुए हैं सारी बस्तियाँ मेरे तेरे क़याम को तरसें हम मेहमान बनें तो उन की बूढ़ी गाएँ ख़ुश्क थनों से दूध उतारें उन के बच्चे अपने बाप का कहना मानें उन के परिंदे छतों पे बैठ के पर फैलाएँ हम दोनों को बड़ी-बूढ़ीयाँ छोड़ने आएँ दरवाज़ों तक मेरी बातें जैसे सच हो डरे हुए बच्चों का तेरी ख़ामोशी है जैसे दुल्हन माइयों बैठे सारे रस्ते मेरी तेरी चाप को तरसें हम आएँ तो रस्ते नशेब से उठ कर हम दोनों को देखें दूर दूर तक हाथ हिलाएँ ख़ुशियाँ चैत के मौसम जैसी और जो क़स्में हम ने खाईं आशिक़ शहज़ादों के मक़बरों जैसी उन में सच्चाई है जानाँ बारिश थकी हुई है उस को अपने बालों और मसामों में सो जाने दो मैं धूप का इक मशरूब तुम्हारे वास्ते सरमा के सूरज से माँगता हूँ