वही बे-ताबियाँ दिल की वही फिरता हुआ दरिया वही कच्चा घड़ा है मुंतज़िर सच के मुसाफ़िर का वही शब की सियह चादर छुपी हैं साज़िशें जिस में अज़ीज़ों की पुराने दोस्तों की हम-जलीसों की वही सरगोशियाँ सैल-ए-सितम की वही मंज़र जो होता है हमेशा रूह-फ़र्सा हादसों का पेश-ख़ेमा सा वही सारे क़रीने सारे हीले हैं बहम अब के जो अहल-ए-दिल को बे-मंज़िल बनाने की हैं तदबीरें मगर अहल-ए-जहाँ को क्या ख़बर कच्चे घड़े पर तैर कर राह-ए-मोहब्बत में फ़ना होना अलग से इक कहानी है कि ये वो मौत है जिस में बका-ए-जावेदानी है मोहब्बत मर नहीं सकती मोहब्बत ग़ैर-फ़ानी है मोहब्बत ग़ैर-फ़ानी है