ऐ मोहब्बत अजीब चीज़ है तू जान-ओ-दिल से सिवा अज़ीज़ है तू तेरी बेताबियाँ हैं रश्क-ए-सुकूँ ग़ैरत-ए-सद-ख़िरद है तेरा जुनूँ तुझ से लज़्ज़त है अश्क-बारी में तुझ से राहत है आह-ओ-ज़ारी में तेरे बाइ'स है ग़म भी रूह-फ़ज़ा तेरे दम से है तल्ख़ियों में मज़ा लज़्ज़त-ए-सोज़-ओ-साज़ है तुझ से जान-ओ-दिल का गुदाज़ है तुझ से फ़ैज़ से तेरे अश्क-ए-दीदा-ए-तर रू-कश-ए-सद-हज़ार लाल-ओ-गुहर दिल की नश्व-ओ-नुमा तिरे दम से रूह की है जिला तिरे दम से दर्द में तेरे ऐसी लज़्ज़त है जिस से शर्मिंदा कैफ़-ए-इशरत है तुझ से आलाम में शकेबाई तुझ से एहसास में है रानाई ज़हर का जाम तुझ से आब-ए-हयात तुझ से रंगीं जुदाई के लम्हात आग को तू बनाती है गुलज़ार तुझ से आसाँ है आज़माइश-ए-दार तौक़-ओ-ज़ंजीर तेरा ज़ेवर हैं तेरे काँटे गुलों से बेहतर हैं है कशिश से तिरी जहाँ का निज़ाम तुझ से पाइंदा नज़्म-ए-सुब्ह-ओ-शाम तू न ज़र्रों को गर करे बाहम गिर पड़े ये इमारत-ए-मोहकम दर्स-ए-ईसार तू सिखाती है नफ़्स की सर-कशी मिटाती है तू ग़ुबार-ए-हवस को धोती है दिल की आलूदगी को खोती है आग में तेरी जो भी जलता है बन के पारस ही वो निकलता है