जागता हूँ तो सितारे मिरी आँखों में उतर जाते हैं नींद आती है तो महताब सा चेहरा तेरा आईना मुझ को दिखाता है कई चेहरों का देखते देखते ख़्वाबों में कई ख़्वाब बिखर जाते हैं वक़्त की गलियों में आवारा लिए फिरता है एहसास-ए-जमाल मैं सफ़ीने की तरह देखता रहता हूँ तुझे चाँदनी मेरा कफ़न तेरी क़बा बनती है मौज-ए-एहसास में रूहों का सफ़र जारी है हम जो ज़िंदा थे जो ज़िंदा हैं न ज़िंदा होंगे एक लम्हा किसी रानाई का पैकर था कभी मेरे ख़्वाबों का लहू मुझ से लिए जाता है एक लम्हे ने तराशा है मुझे जाम की सूरत तुझ को सर-ए-बाज़ार दिखाया है कि तू मीना-ब-दोश आइना-ख़ाने में नीलाम की तस्वीर दिखाई दी है रक़्स लम्हों का वही फ़न्न-ए-ख़रीदारी है आज सरमा-ए-अफ़्लास वो फ़न की क़सम खाते रहे हैं बरसों गर्दिश-ए-जाम में क्यूँ जाम सर-ए-शाम समझते हैं मुझे क्यूँ तिरे जिस्म के पत्थर को समझते हैं कि तू मीना-ब-दोश इन की आग़ोश में चुप-चाप चली जाएगी हम तो रूहें हैं जिन्हें चाँद कफ़न-दोज़ किए जाता है हम सर-ए-दस्त जो पत्थर भी हैं शहकार भी हैं टूट जाते हैं बिखर जाते हैं मर जाते हैं किस लिए हसरत-ए-बे-दाद को सीने से लगाया था कभी