मिरे साक़िया मुझे भूल जा मिरे दिलरुबा मुझे भूल जा न वो दिल रहा न वो जी रहा न वो दौर-ए-ऐश-ओ-ख़ुशी रहा न वो रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-दिली रहा न वो औज-ए-तिश्ना-लबी रहा न वो ज़ौक़-ए-बादा-कशी रहा मैं अलम-नवाज़ हूँ आज-कल मैं शिकस्ता-साज़ हूँ आज-कल मैं सरापा राज़ हूँ आज-कल मुझे अब ख़याल में भी न मिला मुझे भूल जा मुझे भूल जा मुझे ज़िंदगी से अज़ीज़-तर फ़क़त एक तेरी ही ज़ात थी तिरी हर निगाह मिरे लिए सबब-ए-सुकून-ए-हयात थी मिरी दास्तान-ए-वफ़ा कभी तिरी शरह-ए-हुस्न-ए-सिफ़ात थी मगर अब तो रंग ही और है न वो तर्ज़ है न वो तौर है ये सितम भी क़ाबिल-ए-ग़ौर है तुझे अपने हुस्न का वास्ता मुझे भूल जा मुझे भूल जा क़सम इज़्तिराब-ए-हयात की मुझे ख़ामुशी में क़रार है मिरे सहन-ए-गुलशन-ए-इश्क़ में न ख़िज़ाँ है अब न बहार है यही दिल था रौनक़-ए-अंजुमन यही दिल चराग़-ए-मज़ार है मुझे अब सुकून-ए-दिगर न दे मुझे अब नवेद-ए-सहर न दे मुझे अब फ़रेब-ए-नज़र न दे न हो वहम-ए-इश्क़ में मुब्तला मुझे भूल जा मुझे भूल जा