''मिरे पाँव के नीचे ख़ाक नहीं किसी और ज़मीं की मिट्टी है'' मिरे हाथ में वक़्त की रासें हैं जो पल पल फिसली जाती हैं और हरे दरख़्तों की शाख़ें मिरा रस्ता झाँकती रहती हैं और सब्ज़ घनेरा जंगल है मिरे पाँव के नीचे चाँद नहीं इक और ही देस की मिट्टी है और धूप का दरिया मौज में है और दश्त मिरे क़दमों से लिपटा जाता है मुझे कोई न कोई बुलाता है मिरे पाँव भी मेरे पाँव नहीं मिरा जिस्म नहीं मिरी जान नहीं मिरी आँखों ने ग़द्दारी की मिरे हाथ किसी ने काट दिए मिरा दिल मुझे राह में छोड़ गया अब धूप का दरिया मौज में है और दूर कोई जंगल में है