ये जो फ़स्ल-ए-फ़ुर्क़त-ए-अस्र है इसे काट भी ये जो दफ़्तर-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त है इसे बंद कर इसे बंद कर कि वो बुत-फ़रोश नहीं रहे जो असीर थे रुख़-ए-दहर के तिरे रू-ब-रू तिरे चार सू शब हस्त-ओ-बूद की राह में तिरे हम-क़दम तिरे आइनों की शिकस्तगी का भरम लिए कोई और कब है मिरे सिवा कोई और कब था मिरे बग़ैर मगर ऐ रहीन-ए-दम-ए-अलस्त मिरे वाक़िए के मुक़द्दमात से पेशतर मेरी बंदगी को फ़रोग़ दे कभी दोपहर के ख़ुमार में किसी अक्स-ए-मौज-ए-बला में रख मिरे ख़ाक-ओ-ख़ूँ को निहाल कर मुझे खोल ताज़ा हवा में रख