(1) ऐ सब से अव्वल और आख़िर जहाँ-तहाँ, हाज़िर और नाज़िर ऐ सब दानाओं से दाना सारे तवानाओं से तवाना ऐ बाला, हर बाला-तर से चाँद से सूरज से अम्बर से ऐ समझे बूझे बिन सूझे जाने-पहचाने बिन बूझे सब से अनोखे सब से निराले आँख से ओझल दिल के उजाले ऐ अंधों की आँख के तारे ऐ लंगड़े लूलों के सहारे नातियों से छोटों के नाती साथियों से बिछड़ों के साथी नाव जहाँ की खेने वाले दुख में तसल्ली देने वाले जब अब तब तुझ सा नहीं कोई तुझ से हैं सब तुझ सा नहीं कोई जोत है तेरी जल और थल में बास है तेरी फूल और फल में हर दिल में है तेरा बसेरा तू पास और घर दूर है तेरा राह तिरी दुश्वार और सुकड़ी नाम तिरा रह-गीर की लकड़ी तू है ठिकाना मिस्कीनों का तू है सहारा ग़मगीनों का तू है अकेलों का रखवाला तू है अँधेरे घर का उजाला लागू अच्छे और बुरे का ख़्वाहाँ खोटे और खरे का बेद निरासे बीमारों का गाहक मंदे बाज़ारों का सोच में दिल बहलाने वाले बिपता में याद आने वाले (2) ऐ बे-वारिस घरों के वारिस बे-बाज़ू बे-परों के वारिस बे-आसों की आस है तू ही जागते सोते पास है तू ही बस वाले हैं या बे-बस हैं तू नहीं जिन का वो बे-कस हैं साथी जिन का ध्यान है तेरा दुसरायत की वहाँ नहीं पर्वा दिल में है जिन के तेरी बड़ाई गिनते हैं वो पर्बत को राई बेकस का ग़म-ख़्वार है तू ही बुरी बनी का यार है तू ही दुखिया दुखी यतीम और बेवा तेरे ही हाथ उन सब का है खेवा तू ही मरज़ दे तू ही दवा दे तू ही दवा-दारू में शिफ़ा दे तू ही पिलाए ज़हर के प्याले तू ही फिर अमृत ज़हर में डाले तू ही दिलों में आग लगाए तू ही दिलों की लगी बुझाए चुम्कारे चुम्कार के मारे मारे मार के फिर चुम्कारे प्यार का तेरे पूछना क्या है मार में भी इक तेरी मज़ा है (3) ऐ रहमत और हैबत वाले शफ़क़त और दबाग़त वाले ऐ अटकल और ध्यान से बाहर जान से और पहचान से बाहर अक़्ल से कोई पा नहीं सकता भेद तिरे हुक्मों में हैं क्या क्या एक को तू ने शाद किया है एक के दिल को दाग़ दिया है उस से न तेरा प्यार कुछ ऐसा उस से न तू बेज़ार कुछ ऐसा हर दम तेरी आन नई है जब देखो तब शान नई है यहाँ पछुआ है वहाँ पुर्वा है घर घर तेरा हुक्म नया है फूल कहीं कुमलाए हुए हैं और कहीं फल आए हुए हैं खेती एक की है लहराती एक का हर दम ख़ून सुखाती एक पड़े हैं धन को डुबोए एक हैं घोड़े बेच के सोए एक ने जब से होश सँभाला रंज से उस को पड़ा न पाला एक ने इस जंजाल में आ कर चैन न देखा आँख उठा कर मेंह कहीं दौलत का है बरसता है कोई पानी तक को तरसता एक को मरने तक नहीं देते एक उकता गया लेते लेते हाल ग़रज़ दुनिया का यही है ग़म पहले और ब'अद ख़ुशी है रंज का है दुनिया के गिला क्या तोहफ़ा यही ले दे के है याँ का यहाँ नहीं बनती रंज सहे बिन रंज नहीं सब एक से लेकिन एक से यहाँ रंज एक है बाला एक से है दर्द एक निराला घाव है गो नासूर की सूरत पर उसे क्या नासूर से निस्बत तप वही दिक़ की शक्ल है लेकिन दिक़ नहीं रहती जान लिए बिन दिक़ हो वो या नासूर हो कुछ हो दे न जो अब उम्मीद किसी को रोज़ का ग़म क्यूँ-कर सहे कोई आस न जब बाक़ी रहे कोई तू ही कर इंसाफ़ ऐ मिरे मौला कौन है जो बे-आस है जीता गो कि बहुत बंदे हैं पुर-अरमाँ कम हैं मगर मायूस हैं जो याँ ख़्वाह दुखी है ख़्वाह सुखी है जो है इक उम्मीद उस को बंधी है खेतियाँ जिन की खड़ी हैं सूखी आस वो बाँधे बैठे हैं मेंह की घटा जिन की असाड़ी में है सावनी की उम्मीद नहीं है डूब चुकी है उन की अगेती देती है ढारस उन को पछेती एक है इस उम्मीद पे जीता अब हुई बेटी अब हुआ बेटा एक को जो औलाद मिली है उस को उमंग शादियों की है रंज है या क़िस्मत में ख़ुशी है कुछ है मगर इक आस बंधी है ग़म नहीं उन को ग़मगीं हैं जो दिल ना-उमीद नहीं हैं काल में कुछ सख़्ती नहीं ऐसी काल में है जब आस समयँ की सहल है मौजों से छुटकारा जब कि नज़र आता है किनारा पर नहीं उठ सकती वो मुसीबत आएगी जिस के ब'अद न राहत शाद हो उस रह-गीर का क्या दिल? मर के कटेगी जिस की मंज़िल उन उजड़ों को कल पड़े क्यूँ-कर घर न बसेगा जिन का जनम भर उन बिछड़ों का क्या है ठिकाना? जिन को न मिलने देगा ज़माना अब ये बला टलती नहीं टाली मुझ पे है जो तक़दीर ने डाली आईं बहुत दुनिया में बहारें ऐश की घर घर पड़ीं पुकारें पड़े बहुत बाग़ों में झूले ढाक बहुत जंगल में फूले गईं और आएँ चाँदनी रातें बरसीं खुलीं बहुत बरसातें पर न खिली हरगिज़ न खिलेगी वो जो कली मुरझाई थी दिल की आस ही का बस नाम है दुनिया जब न रही यही तो रहा क्या? ऐसे बिदेसी का नहीं ग़म कुछ जिस को न हो मिलने की क़सम कुछ रोना उन बन-बासियों का है देस निकाला जिन को मिला है हुक्म से तेरे पर नहीं चारा कड़वी मीठी सब है गवारा ज़ोर है क्या पत्ते का हवा पर चाहे जिधर ले जाए उड़ा कर तिनका इक और सात समुंदर जाए कहाँ मौजों से निकल कर क़िस्मत ही में जब थी जुदाई फिर टलती किस तरह ये आई? आज की बिगड़ी हो तो बने भी अज़ल की बिगड़ी ख़ाक बनेगी तू जो चाहे वो नहीं टलता बंदे का याँ बस नहीं चलता मारे और न दे तू रोने थपके और न दे तू सोने ठहरे बन आती है न भागे तेरी ज़बरदस्ती के आगे तुझ से कहीं गर भागना चाहें बंद हैं चारों खूँट की राहें तू मारे और ख़्वाह नवाज़े पड़ी हुई हूँ मैं तेरे दरवाज़े तुझ को अपना जानती हूँ मैं तुझ से नहीं तो किस से कहूँ मैं माँ ही सदा बच्चे को मारे और बच्चा माँ माँ ही पुकारे (4) ऐ मिरे ज़ोर और क़ुदरत वाले हिकमत और हुकूमत वाले मैं लौंडी तेरी दुखयारी दरवाज़े की तेरी भिकारी मौत की ख़्वाहाँ जान की दुश्मन जान अपनी है आप अजीरन अपने पराए की धुत्कारी मैके और ससुराल पे भारी सह के बहुत आज़ार चली हूँ दुनिया से बेज़ार चली हूँ दिल पर मेरे दाग़ हैं जितने मुँह में बोल नहीं हैं उतने दुख दिल का कुछ कह नहीं सकती इस के सिवा कुछ कह नहीं सकती तुझ पे है रौशन सब दुख दिल का तुझ से हक़ीक़त अपनी कहूँ क्या ब्याह के दम पाई थी न लेने लेने के याँ पड़ गए देने ख़ुशी में भी दुख साथ न आया ग़म के सिवा कुछ हात न आया एक ख़ुशी ने ग़म ये दिखाए एक हँसी ने गुल ही खिलाए कैसा था ये ब्याह निनावाँ जूँही पड़ा इस का परछावाँ चैन से रहने दिया न जी को कर दिया मलियामेट ख़ुशी को रो नहीं सकती तंग हूँ याँ तक और रोऊँ तो रोऊँ कहाँ तक हँस हँस दिल बहलाऊँ क्यूँ-कर ओसों प्यास बुझाऊँ क्यूँ-कर एक का कुछ जीना नहीं होता एक न हँसता भला न रोता लेटे गर सोने के बहाने पाएनती कल है और न सिरहाने जागिये तो भी बन नहीं पड़ती जागने की आख़िर कोई हद भी अब कल हम को पड़ेगी मर कर गोर है सूनी सेज से बेहतर बात से नफ़रत काम से वहशत टूटी आस और बुझी तबीअत आबादी जंगल का नमूना दुनिया सूनी और घर सूना दिन है भयानक और रात डरानी यूँ गुज़री सारी ये जवानी बहनें और बहनेलियाँ मेरी साथ की जो थीं खेलियाँ मेरी मिल न सकीं जी खोल के मुझ से ख़ुश न हुईं हँस बोल के मुझ से जब आईं रो-धो के गईं वो जब गईं बे-कल हो के गईं वो कोई नहीं दिल का बहलावा आ नहीं चुकता मेरा बुलावा आठ पहर का है ये जुलापा काटूँगी किस तरह रँडापा थक गई दुख सहते सहते थम गए आँसू बहते बहते आग खुली दिल की न किसी पर घुल गई जान अंदर ही अंदर देख के चुप जाना न किसी ने जान को फूँका दिल की लगी ने दबी थी भोभल में चिंगारी ली न किसी ने ख़बर हमारी क़ौम में वो ख़ुशियाँ बियाहों की शहर में वो धोएँ साहों की त्यौहारों का आए दिन आना और सब का त्यौहार मनाना वो चैत और फागुन की हवाएँ वो सावन भादों की घटाएँ वो गर्मी की चाँदनी रातें वो अरमान भरी बरसातें किस से कहूँ किस तौर से काटें ख़ैर कटें जिस तौर से काटें चाव के और ख़ुशियों के समय सब आते हैं ख़ुश कल जान को हो जब रंज में हैं सामान ख़ुशी के और जलाने वाले ही के घर बरखा और पिया बिदेसी आइयो बरखा कहीं न ऐसी दिन ये जवानी के कटे ऐसे बाग़ में पंछी क़ैद हो जैसे रुत गई सारी सर टकराते उड़ न सके पर होते सारे किसी ने होगी कुछ कल पाई मुझे तो शादी रास न आई आस बंधी लेकिन न मिला कुछ फूल आया और फल न लगा कुछ रह गया दे कर चाँद दिखाई चाँद हुआ पर ईद न आई फल की ख़ातिर बर्छी खाई फल न मिला और जान गँवाई रेत में ज़र्रे देख चमकते दौड़ पड़ी में झील समझ के चारों खूँट नज़र दौड़ाई पर पानी की बूँद न पाई
This is a great सारी शायरी.