मैं अपने जिस्म के बाहर खड़ा हूँ इन आँखों के दरीचे से तो अब बसें सड़कें मिलों की चिमनियां म्यूंसिपल्टी का वो नल कोढ़ी भिकारी धनी-मल का बहुत ऊँचा मकाँ कुछ भी नज़र आता नहीं अब इन आँखों में मेरी हज़ारों इंजनों का शोर है काला धुआँ है मगर दिल को लुभाता है अभी तक नील-गूँ दूरी का मंज़र चाँद तारे आसमाँ देखने की ख़्वाहिशें जागती हैं मशीनी हाथ मुझ को ढूँडते हैं मैं अपने जिस्म के बाहर खड़ा हूँ