जल्वा-ए-हुस्न-ए-अज़ल आए तसव्वुर में अगर गोशा-ए-दिल में मचलते हुए अरमाँ होंगे इक हसीं गोर-ए-ग़रीबाँ पे हुआ यूँ गोया ये भी कम्बख़्त कभी हज़रत-ए-इंसाँ होंगे पाँव रखते भी नज़ाकत से अगर होंगे कहीं बे-बदल हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ पे नाज़ाँ होंगे फूल बिस्तर पे बिछाने को अगर हासिल थे सैर के वास्ते बाग़ और गुलिस्ताँ होंगे इत्र मलने के लिए कपड़े बदलने के लिए महल-ओ-ऐवाँ में बहुत दस्त-ए-हसीनाँ होंगे नित-नई रोज़ मयस्सर थी उन्हें बज़्म-ए-सुरूद दिल बहलने के लिए सैंकड़ों सामाँ होंगे एक लम्हा भी गुज़रता था जो तन्हाई में मुज़्तरिब और परेशान ये ज़ीशाँ होंगे गोर-ओ-मर्क़द पे यूँही सैर को आते होंगे और सीनों में लिए हसरत-ओ-अरमाँ होंगे क्या ख़बर थी कि उजड़ जाएगा गुलज़ार-ए-हयात एक झोंके से हवा के न ये सामाँ होंगे क्या यूँही मौत मिटाएगी जहाँ से हम को क्या यूँही अपने लिए दश्त-ओ-बयाबाँ होंगे ज़िंदगी में न करेंगे जो बशर कार-ए-सवाब वक़्त-ए-रुख़्सत वो परेशान-ओ-पशेमाँ होंगे 'आफ़्ताब' उन की समझता हूँ हयात-ए-अबदी जो बशर धर्म पे सौ-जान से क़ुर्बां होंगे