वो अचानक चल दिया गोया सफ़र था मुख़्तसर ज़िंदगी-भर जो सफ़र करता रहा चलता रहा छाँव में अफ़्लाक की पलता रहा ढलता रहा पास जो पूँजी उजालों की थी सब कुछ बाँट कर राह के बे-माया ज़र्रों को बना कर आफ़्ताब ख़ुद से ला-परवा ज़माने की नज़र से बे-नियाज़ ज़ोहद से फ़ितरी लगाओ दिल में तौक़ीर-ए-हिजाज़ जाने क्यूँ उस को पसंद आई थी ज़िंदी की नक़ाब मरहले तारीक थे और मंज़िलें तारीक तर उस की नन्ही रौशनी पैहम रही ज़ुल्मत-शिकन सरसर-ए-बे-ए'तिदाली से गुरेज़ाँ फ़िक्र-ओ-फ़न होश में था ता-दम-ए-आख़िर ज़मीर-ए-मो'तबर वो मुसाफ़िर था अदम की राह में गुम हो गया ग़म तो इस का है कि इक अच्छा सा इंसाँ खो गया