मिरे वतन तिरी ख़िदमत में ले कर आया हूँ जगह जगह के तिलिस्मात देस देस के रंग पुराने ज़ेहन की राख और नए दिलों की उमंग न देख ऐसी निगाहों से मेरे ख़ाली हाथ न यूँ हो मेरी तही-दामनी से शर्मिंदा बसे हुए हैं मिरे दिल में सैकड़ों तोहफ़े बहुत से ग़म कई ख़ुशियाँ कई अनोखे लोग कहीं से कैफ़ ही कैफ़ और कहीं से दर्द ही दर्द जिन्हें उठा नहीं सकता हर एक दश्त-नवर्द जो थैलियों के शिकम में समा नहीं सकते जो सूटकेस की जेबों में आ नहीं सकते बिछड़ के तुझ से कई अजनबी दयारों ने मुझे गले से लगाया मुझे तसल्ली दी मुझे बताए शब-ए-तीरा-ओ-सियाह के राज़ मिरे बदन को सिखाए हज़ार इस्तिलज़ाज़ कुछ इस तरह मिरे पहलू में आए ज़ोहरा-ओ-शम्स मैं मुद्दतों यही समझा किया कि जिस्म का लम्स अज़ल से ता-ब-अबद एक ही मसर्रत है कि सब फ़रेब है मेरा बदन हक़ीक़त है और इस तरह भी हुआ है कि मेरी तन्हाई समुंदरों से लिपट कर हवा से टकरा कर कभी समेट के मुझ को नए जज़ीरों में कभी पहाड़ के झरने की तरह बिखरा कर कभी बिठा के मुझे आसमाँ के दोश-ब-दोश कभी ज़मीं की तहों में जड़ों में फैला कर कुछ इस तरह मिरे एहसास में समाई है कि मुझ को ज़ात से बाहर निकाल लाई है कुछ ऐसा ख़्वाब सा ना-ख़्वाबियाँ सी तारी थीं बदन तो क्या मुझे परछाइयाँ भी भारी थीं मिरे दयार कहाँ थे तिरे तमाशाई कि दीदनी था मिरा जश्न-ए-आबला-पाई कुछ ऐसे दोस्त मिले शहर-ए-ग़ैर में कि मुझे कई फ़रिश्ता-नफ़स दुश्मनों की याद आई मैं सोचता हूँ कि कम होंगे ऐसे दीवाने न कोई क़द्र हो जिन की न कोई रुस्वाई मुझे बुझा न सकी यख़-ज़दा हवा-ए-शुमाल मुझे डुबो न सकी कुलज़ुमों की गहराई न जाने कैसा कुरह था मिरा वजूद कि रोज़ मिरे क़रीब ज़मीं घूमती हुई आई तलाश करते हुए गुम-शुदा ख़ज़ानों को बहुत से मिस्र के फ़िरऔन मक़बरों में मिले ज़बान-ए-संग में जो हम-कलाम होते हैं कुछ ऐसे लोग पुराने मुजस्समों में मिले बुलंद-बाम कलीसा में थे वही फ़नकार जो ख़स्ता-हाल मसाजिद के गुम्बदों में मिले मरी थकी हुई ख़्वाबीदगी से नालाँ थे वो रत-जगे जो मसाइल की करवटों में मिले कई सुराग़ नज़र आए दास्तानों में कई चराग़ किताबों के हाशियों में मिले सुना के अपने उरूज-ओ-ज़वाल के क़िस्से सभी ने मुझ से मिरा रंग-ए-दास्ताँ पूछा दिखा के बर्फ़ के मौसम मिरे बुज़ुर्गों ने मिज़ाज-ए-शाोलगी-ए-अस्र-ए-नौजवाँ पूछा मिरी झुकी हुई आँखें तलाश करती रहें कोई ज़मीर का लहजा कोई उसूल की बात गुज़र गई मिरी पलकों पे जागती हुई रात नदामतों का पसीना जबीं पे फूट गया मिरी ज़बाँ पे तिरा नाम आ के टूट गया क़ुबूल कर ये नदामत कि इस पसीने की हर एक बूँद में चिंगारियों के साँचे हैं क़ुबूल कर मिरे चेहरे की झुर्रियाँ जिन में कहीं जुनूँ कहीं तहज़ीब के तमांचे हैं सँभाल मेरा सुबुक हदिया-ए-ग़म-ए-इदराक जो मुझ को सात समुंदर का ज़हर पी के मिला सक़ाफ़तों के हर आतिश-फ़िशाँ में जी के मिला तलब किया मुझे यूनान के ख़ुदाओं ने जनम लिया मिरे सीने में देवताओं ने फ़रेब-ओ-हिर्स के हर रास्ते से मोड़ दिया और इस के बा'द सुपर मार्किट पे छोड़ दिया जहाँ बस एक ही मेआ'र-ए-आदमियत था हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़नाँ महव-ए-सैर-ए-वहशत था घड़ी का हुस्न नए रेडियो की ज़ेबाई प्लास्टिक के कँवल नाइलान की टाई इतालिया के नए बूट हाँग-काँग के हार कराइसलर की नई रेंज, टोकियो के सिंगार हर एक जिस्म को आसूदगी की ख़्वाहिश थी हर एक आँख में अस्बाब की परस्तिश थी ये इंहिमाक क़यादत में भी नहीं मिलता ये सू-ए-नफ़्स-ए-इबादत में भी नहीं मिलता मिरे वतन मिरे सामान में तो कुछ भी नहीं बस एक ख़्वाब है और ख़्वाब की फ़सीलें हैं क़ुबूल कर मिरी मैली क़मीज़ का तोहफ़ा कि इस की ख़ाक में सज्दों की सर-ज़मीनें हैं न धुल सकेगा ये दामन कि उस के सीने पर 'बियाफ़रा' के मुक़द्दस लहू के छींटें हैं ये वियतनाम की मिट्टी है जिस के ज़र्रों में पयम्बरों की दमकती हुई जबीनें हैं