मुसीबत की ख़बरें सुनो शाम वालो मुसीबत की ख़बरें गरेबान दामन तलक चाक कर दो सरों पर सवारों की रौंदी हुई ख़ाक डालो अबू-क़ैस को मौत ने खा लिया है अमीर-ए-दमिशक़ इन दिनों सोगवारी में हैं ग़मों के अँधेरों में जकड़े हुए हुज़्न की आग से उन का दिल जल गया आह बू-क़ैस की मौत के बार से झुक गए हैं ख़लीफ़ा के शाने अबू-क़ैस क्या था तुम्हें क्या ख़बर शाम वालो अबू-क़ैस बड़े शहसवारों में था वो ख़लीफ़ा का राज़-आश्ना, बंदगान-ए-ख़ुदा में मुक़र्रब यज़ीद-इबन-ए-मैसून की शब का साथी अबू-क़ैस हिंदा के पोते का तन्हा सहारा वही सुर्ख़ बंदर जो मैसून अपने क़बीले से लाई बहुत शौक़ से नाम उस का अबू-क़ैस रखा फिर अपनी अमानत अरब और अजम के ख़लीफ़ा को सौंपी उसी साहिब-ए-तख़्त-ओ-ताज-ओ-तरब को जिसे आज इस्लाम की पासबानी का पूरा शरफ़ है उसी का और अबू-क़ैस बंदर ख़ुदा उस को बख़्शे उसे घुड़-सवारी में ऐसी महारत थी जिस का बयाँ करना क़ुदरत से बाहर किसी शख़्स-ए-बदबख़्त ने उस के घोड़े को बिदका दिया उस के पाँव रिकाबों से निकले अबू-क़ैस नीचे गिरा और मीलों तलक ठोकरों पर रहा आह किस बे-कसी में अदम को सिधारा मुसीबत, मुसीबत सुनो अहल-ए-इस्लाम अबू-क़ैस की मौत ऐसा बड़ा सानेहा है कि जिस की मुसीबत से आल-ए-उमय्या के क़स्रों में राख और धुआँ भर गया है दुआ! दुआ की ज़रूरत अबू-क़ैस की मग़फ़िरत के लिए और यज़ीद-इबन-ए-हिंदा के सब्र ओ जज़ा के लिए
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