मेरे माज़ी की आँख मुस्तक़बिल और ये मेरा सुबूत बूँद जो पहले समुंदर थी कभी ये हवाएँ जो कभी थीं साँसें और इस पेड़ की तन्हाई मिरी आवाज़ के पानी में कभी भीगेगी मिरे माज़ी की आँख मुस्तक़बिल और ये मेरा सुबूत वक़्त-ए-ना-पेद से आते जाते उस की तारीख़ में सो जाऊँगा मैं अगर था तो मैं हो जाऊँगा