अचानक दबे पाँव वो आ गया था खुली बंद मुट्ठी तो ये हुक्म जारी हुआ हम को लम्बी मसाफ़त को जाना है लेकिन सफ़र के लिए कोई वक़्फ़ा नहीं था सफ़र को ब-उजलत रवाना हुए इस तरह हम न ज़ाद-ए-सफ़र था न मक़्सद न कोई इरादा फ़क़त ला-शुऊरी तरीक़े से अपने क़दम उठ रहे थे बगूले हवाएँ थपेड़े उजाले अंधेरे अंधेरे उजाले फ़क़त धुंद ही धुंद थी दूर तक देर तक हम भटकते रहे थक गए फिर भी चलते रहे थी इताअ'त-गुज़ारी ही अपना मुक़द्दर और इस से मफ़र का कोई रास्ता भी नहीं था सफ़र में कई मोड़ ऐसे भी आए जहाँ अपने देरीना अहबाब को बेबसी से हर इक आन बढ़ती हुई धुंद में डूबते देखते रह गए अपने बस में नहीं था कि हम ख़ुद पे लादी हुई बेबसी भड़कती हुई आग और ख़ून की नद्दियों से किसी तौर हम हाँपते अपनी मंज़िल को पहुँचे वो मंज़िल कहाँ थी फ़क़त बे-कसी ना-मुरादी का अंजाम था वो अचानक दबे पाँव फिर आ गया है वही अपनी मुट्ठी को सख़्ती से भींचे हुए क्या पता इस में फूलों की बस्ती को जाने का पैग़ाम है या किसी वादी-ए-ख़ार को कूच करने का फ़रमान कोई फ़क़त तिफ़्ल-ए-नादाँ की मानिंद हम उस की मुट्ठी में पोशीदा अहकाम के पेश हैं चुप कपड़े आने वाले किसी हादसे का तसव्वुर लिए ख़ौफ़ से काँपते हैं