दैर वीराँ है हरम है बे-ख़रोश बरहमन चुप है मुअज़्ज़िन है ख़मोश सोज़ है अश्लोक में बाक़ी न साज़ अब वो ख़ुत्बे में न हिद्दत है न जोश हो गई बे-सूद तलक़ीन-ए-सवाब अब दिलाएँ भी तो क्या ख़ौफ़-ए-अज़ाब अब हरीफ़-ए-शैख़ कोई भी नहीं ख़त्म है हर एक मौज़ू-ए-ख़िताब आज मद्धम सी है आवाज़-ए-दरूद आज जलता ही नहीं मंदिर में ऊद क्या क़यामत है यकायक हो गया महफ़िल-ए-ज़ोह्हाद पर तारी जुमूद रब्ब-ए-बर-हक़ ख़ालिक़-ए-आली जनाब हो गए अपने मिशन में कामयाब सिलसिला रुश्द-ओ-हिदायत का है ख़त्म आसमाँ से अब न उतरेगी किताब मर गया ऐ वाए शैताँ मर गया