नज़्म By Nazm << दीवार क़हक़हा तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त >> यूँ अचानक मुलाक़ात तुझ से हुई जैसे रहगीर को बे-तलब बे-दुआ राह में एक अनमोल मोती मिले और हंगाम-ए-रुख़्सत ये एहसास है जैसे मर्द-ए-जफ़ा-कश का अंदोख़्ता हासिल-ए-मेहनत-ए-ज़िंदगी राहज़न छीन ले जैसे ज़ाहिद को पीरी में एहसास हो उम्र भर की रियाज़त अकारत गई Share on: