तुम बार बार जीने की ख़ातिर मेरी मन की मिट्टी में मौत क्यूँ बूते हो? जो मिट्टी तख़्लीक़ का दुख सहती हो बाँझ नहीं होती! तुम मुझ से और कितनी नज़्में लिखवाओगे? ज़िंदगी मुझे दस्तक देते देते दम तोड़ रही है उस को जी लेना सब कुछ सहने से बहुत आसान था बग़ैर तड़पे सब कुछ सहना सब से मुश्किल है ख़ुशी का मर जाना भी मुश्किल है देखो मैं लफ़्ज़ तराशते तराशते लफ़्ज़ों की गर्द में दफ़्न हो रही हूँ मौत बाँटते बाँटते मैं जी नहीं सकती! मेरा जीवन और मुश्किल न करो कि मैं मौत को जीना शुरूअ कर दूँ मौत से पहले मर जाना बहुत मुश्किल है