ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क हूँ दुनिया में न पूछो मुझ को देखना हो तो किसी पग पे किसी पेड़ के नीचे जिस की एक भी शाख़ न पत्तों से हरी हो देखो या किसी नाव में जो पार जाती हुई रूहों से भरी हो देखो पार जाना है मुझे बहते पानी से उधर दूर जहाँ एक वादी है जो वीरान भी ख़ामोश भी है एक देवी ने वहाँ घास उगा रक्खी है