मता-ए-दर्द को साहब शुऊ'र खो बैठे सबात-ए-अज़्म को मर्द-ए-ग़ुयूर खो बैठे नज़र से महव है उम्मुल-किताब की तफ़्सीर हुज़ूर मअ'नी-ए-ग़ैब-ओ-ज़हूर खो बैठे गया जो हाथ से ईमान तो तहय्युर क्या वफ़ूर-ए-ऐश में तख़्त-ओ-क़ुसूर खो बैठे दिल-ओ-दिमाग़ से रुख़्सत जिहाद का जज़्बा सबील-ए-हक़ के ज़रूरी उमूर खो बैठे ख़ुदी से बाक़ी थी मज़हब की आबरू थोड़ी शराब-ए-फ़क़्र का हुस्न-ए-सुरूर खो बैठे ग़रीब मिल्लत-ए-मासूम का ख़ुदा-हाफ़िज़ फ़क़ीह-ए-शहर तदय्युन का नूर खो बैठे क़ुलूब ज़िंदा से अफ़्सोस हाशमी फ़रज़ंद चराग़ इश्क़-ए-इलाही का नूर खो बैठे जहाँ में कैसे हो मेराज-ए-ज़िंदगी हासिल यक़ीं की रूह को सदरुस्सुदूर खो बैठे हकीम-ओ-आरिफ़-ओ-सूफ़ी हैं नक़्श बर-दीवार दिल-ओ-दिमाग़ से अनवार-ए-तूर खो बैठे ज़लील साहब-ए-क़ुरआँ हो ये नहीं मुमकिन ज़रूर हुस्न-ए-अमल को हुज़ूर खो बैठे उवैस ओ बू-ज़र ओ उस्मान के अता-कर्दा मज़ाक़-ए-फ़क़्र-ए-मोहम्मद ज़रूर खो बैठे ख़ुलूस-ए-दिल से थी 'बेबाक' शायरी रौशन पयम्बरी के सुखनवर शुऊ'र खो बैठे