कोई इन को पकड़ नहीं सकता उड़ के जान अपनी ये बचाती हैं बैठ कर अलगनी पे ख़ुश हो कर पर खुजाती हैं दुम हिलाती हैं काम के वक़्त करती हैं ये काम काम से मुँह नहीं चुराती हैं बैठ कर खूटियों पे छींकों पर अपनी चूँ चूँ हमें सुनाती हैं खेल के वक़्त खेलती हैं ये मिल के ऊधम बहुत मचाती हैं जब बसेरे का वक़्त होता है एक तूफ़ान सा उठाती हैं शाम को जम्अ हो के पेड़ों पर ग़ुल मचाती ख़ुशी मनाती हैं रात और नींद आती है जिस दम चुपकी पेड़ों पे बैठ जाती हैं फिर परों में छुपा के चोंचों को नींद के ये मज़े उड़ाती हैं उठ के तड़के फिर अपनी चूँ चूँ से अपने मालिक के गीत गाती हैं