नारा-ए-उर्दू

मेरे हर लफ़्ज़ में है कौसर-ओ-गंगा का लहू
अदब-ओ-फ़न ही हैं बिखरे हुए मेरे गेसू

चमन-ए-शर्क़ में रक़्सिंदा हैं मेरी ख़ुश्बू
दौलत-ए-इल्म से आबाद है मेरा पहलू

ख़ून-ए-दिल से दुर-ए-शहवार किए हैं पैदा
मैं ने हर अहद मैं फ़नकार किए हैं पैदा

मेरी ज़ुल्फ़ों को 'वली' ने भी सँवारा था कभी
मुझ को 'हाली' ने मोहब्बत से पुकारा था कभी

'शेफ़्ता' ने मिरी कश्ती को उभारा था कभी
'मुसहफ़ी' ने मिरे चेहरे को निखारा था कभी

'ज़ौक़'-ओ-'मोमिन' ने मिरा साज़ बजाया बरसों
'दाग़' ने अपने कलेजे से लगाया बरसों

याद तो होंगे ज़माने को वो 'इंशा'-ओ-'नज़ीर'
याद तो होंगे ज़माने को वो 'मीर' और 'अमीर'

याद तो होंगे ज़माने को वो 'मेहर' और 'मुनीर'
याद तो होंगे ज़माने को 'अनीस' और 'दबीर'

मुझ को 'चकबस्त' ने 'जौहर' ने 'शरर' ने पाला
मैं हूँ जिस को कि शहंशाह-'ज़फ़र' ने पाला

मेरे आग़ोश में पिन्हाँ है मता-ए-'साइल'
अब भी 'सीमाब' से रक़्सिंदा है मेरी महफ़िल

आज भी 'बर्क़' से रख़्शंदा है मेरी मंज़िल
अब भी बाक़ी हैं 'फ़िराक़'-ओ-'जिगर'-ओ-'साग़र'-ओ-'दिल'

अपने हाथों में बहाराँ का उठाए हुए साज़
आज भी है मिरी महफ़िल में बला-नोश 'मजाज़'

'असगर'-ओ-'अकबर'-ओ-'अहसन' की भी दम-साज़ हूँ मैं
जिस को 'तुलसी' ने बजाया था वही साज़ हूँ मैं

आज भी 'कैफ़ी'-ओ-'महरूम' की आवाज़ हूँ मैं
आज भी 'साहिर'-ओ-'सरदार' का ए'जाज़ हूँ मैं

फ़ल्सफ़ा मेरे सहीफ़े में है हिकमत भी है
आरज़ू भी मिरे आग़ोश में हसरत भी है

अब भी अब्बास का परचम है मिरी महफ़िल में
जादा-पैमा है 'नियाज़' अब भी मिरी मंज़िल में

अब भी काम आता है आज़ार मिरी मुश्किल में
'आज़मी' आज भी ख़न्दीदा है मेरे दिल में

अब भी ज़ौ-रेज़ी-ए-'अख़्तर' है मिरी बातों में
आज भी कृष्ण की मुरली है मिरे हाथों में

आज बे-कैफ़ हूँ बे-रंग हूँ बेहाल हूँ मैं
ख़ुद यगानों की निगाहों से भी पामाल हूँ मैं

उन से कह दे ये कोई आतिश-ए-सय्याल हूँ मैं
'जोश' का जोश हूँ 'इक़बाल' का इक़बाल हूँ मैं

मेरे आग़ोश में 'ग़ालिब' भी हैं 'सरशार' भी हैं
इस नए दौर के आग़ाज़ में 'इज़हार' भी हैं


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