ये कैसी साज़िश है जो हवाओं में बह रही है मैं तेरी यादों की सारी शमएँ बुझा के ख़्वाबों में चल रहा हूँ तिरी मोहब्बत मुझे नदामत से देखती है वो आबगीना हूँ ख़्वाहिशों का कि धीरे धीरे पिघल रहा हूँ ये मेरी आँखों में कैसा सहरा उभर रहा है मैं बाल-रूमों में बुझ रहा हूँ शराब-ख़ानों में जल रहा हूँ जो मेरे अंदर धड़क रहा था वो मर रहा है