कितना मातम करूँ अपने दिल के उस हिस्से का जो तुम्हारे पास रह गया कितना सोग मनाऊँ अपनी आँखों की उस चमक का जो तुम्हारे आँसुओं तुम्हारी मुस्कुराहट में फीकी पड़ गई अपनी ज़िंदगी को कैसे बाहर निकालूँ उस क़ब्र से जो मैं ने नहीं खोदी अपनी मोहब्बत को कैसे वापस लाऊँ उस रास्ते से जो मैं ने नहीं बनाया किस तरह देख पाऊँगा उन चीज़ों को जिन को तुम ने देखा तुम ने देखा किस तरह गुज़रता हूँ मैं उन चीज़ों के दरमियान से जिन के दरमियान से अब तुम गुज़र नहीं सकोगी