किरामन-कातिबीन आमाल-नामा लिख के ले जाएँ दिखाएँ ख़ालिक़-ए-कौन-ओ-मकाँ को और समझाएँ मआनी और लफ़्ज़ों में वो रिश्ता अब नहीं बाक़ी लुग़त अल्फ़ाज़ का इक ढेर है लफ़्ज़ों पे मत जाना नया आहंग होता है मुरत्तब लफ़्ज़ ओ मअनी का मिरे हक़ में अभी कुछ फ़ैसला सादिर न फ़रमाना मैं जिस दिन आऊँगा ताज़ा लुग़त हमराह लाऊँगा