ऐ अहल-ए-शहर आओ चलो उस तरफ़ चलो कहानियों की धुँद से आगे ज़रा उधर वो सामने खुला हुआ मैदान है जहाँ इक ऐसा खेल पेश किया जाएगा वहाँ जो आज तक किसी ने भी देखा नहीं कभी यानी तुम्हारी जागती आँखों के सामने आवाज़ों के नुजूम सदाओं के माहताब सन्नाटों की सलीब पे लटकाए जाएँगे