नया शहर By Nazm << इज़ाफ़ी ज़रूरतों के लिए ए... दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत >> मुझे याद है राएगानी के गहरे समुंदर में जब मैं ने इकतारा अपना बजाया तो इस नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा से मक़ामात आह-ओ-फ़ुग़ाँ के उभारे मज़ामीन-ए-नौ के शरारे जगाए मिटा डाला एहसास सब राएगानी का समुंदर की तह से नया शहर उभारा Share on: